नई दिल्ली: उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ की ओर से केशवानंद भारती मामले में ऐतिहासिक फैसले पर सवाल उठाए जाने के बाद विपक्षी दलों की ओर से इसकी कड़ी आलोचना की जा रही है। कांग्रेस नेता और पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने कहा कि राज्यसभा के सभापति का केशवानंद भारती मामले से जुड़े फैसले को गलत कहना न्यायपालिका पर अभूतपूर्व हमला है। साथ ही यह भी कहा कि राज्यसभा के सभापति का यह कहना गलत है कि संसद ही सुप्रीम है, बल्कि संविधान ही सुप्रीम होता है।
धनखड़ के बयान के बाद ट्विटर के जरिए जवाब देते हुए कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पी चिदंबरम ने कहा कि धनखड़ का यह दावा गलत है कि संसद सुप्रीम होता है। जबकि वास्तव में संविधान सुप्रीम होता है। संविधान के मूलभूत सिद्धांतों पर बहुसंख्यकवादी की ओर से हमले को रोकने के लिए ही ‘मूल संरचना’ के सिद्धांत को विकसित किया गया था। ”
क्या ऐसे संशोधन मान्य हो जाएंगेः चिदंबरम
मूल संरचना सिद्धांत पर जोर देते हुए चिदंबरम ने कहा, “मान लीजिए कि संसद ने बहुमत से संसदीय प्रणाली को खत्म करते हुए राष्ट्रपति प्रणाली में बदलने के लिए वोट कर किया या अनुसूची VII से राज्य सूची को निरस्त कर दिया और राज्यों की अनन्य विधायी शक्तियों को खत्म कर दिया। ऐसे में क्या ये संशोधन मान्य होंगे?
पार्टी के वरिष्ठ नेता चिदंबरम ने यह दावा भी किया कि धनखड़ की टिप्पणी के बाद संविधान से प्रेम करने वाले हर नागरिक को आगे के खतरों को लेकर सजग हो जाना चाहिए। उन्होंने कहा, “असल में सभापति के विचार सुनने के बाद हर संविधान प्रेमी नागरिक को आगे के खतरों को लेकर सजग हो जाना चाहिए। ”
उपराष्ट्रपति धनखड़ ने कहा था
एक दिन पहले उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने केशवानंद भारती मामले में उस ऐतिहासिक फैसले पर सवाल उठाया जिसने देश में संविधान के मूलभूत ढांचे का सिद्धांत दिया था। धनखड़ ने इस ऐतिहासिक फैसले पर सवाल उठाते हुए कहा कि न्यायपालिका, संसद की संप्रभुता से समझौता नहीं कर सकती। उपराष्ट्रपति ने कहा, “यदि संसद के बनाए कानून को किसी भी आधार पर कोई भी संस्था अमान्य करती है तो प्रजातंत्र के लिए ठीक नहीं है बल्कि यह कहना मुश्किल होगा क्या हम लोकतांत्रिक देश हैं। ”
साथ ही उन्होंने सुप्रीम कोर्ट द्वारा 2015 में राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (NJAC) अधिनियम को निरस्त किए जाने पर कहा कि ‘दुनिया में ऐसा कहीं नहीं हुआ है। उन्होंने कहा कि लोकतंत्र के अस्तित्व के लिए संसदीय संप्रभुता और स्वायत्तता सर्वोपरि है और कार्यपालिका या न्यायपालिका को इससे समझौता करने की अनुमति नहीं दी जा सकती है।
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