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लड़कियां OYO में हनुमान जी की आरती करने नहीं जातीं, हरियाणा महिला आयोग की अध्यक्ष के बयान पर विवाद

हरियाणा राज्य महिला आयोग की अध्यक्ष रेणु भाटिया ने लिव इन रिलेशन और प्रेमी जोड़ों को लेकर एक ऐसा बयान दिया, जिस पर विवाद हो गया। महिलाओं के साथ बढ़ रहे शारीरिक शोषण के मामलों पर रेनू भाटिया ने उल्टा लड़कियों की ही इसका जिम्मेदार बताते हुए कहा कि वे OYO रूम क्यों जाती हैं? लड़कियां हनुमान जी की आरती करने तो नहीं जाती

दरअसल रेणु भाटिया गुरुवार को कैथल के आरकेएसडी कॉलेज गई थीं। वहां पर कानून और साइबर अपराध पर जागरुकता कार्यक्रम में हिस्सा लिया। इस दौरान लड़कियों को लेकर उन्होंने कई बातें कहीं, जिस वजह से वो विवादों में आ गई हैं। कई लोगों ने उनसे माफी मांगने की मांग की।भाटिया ने कहा कि लिव-इन रिलेशनशिप पर सुप्रीम कोर्ट के निर्देश की वजह से महिला आयोग के पास इस मामले में सीमित अधिकार हैं।

शारीरिक शोषण के ज्यादातर मामले लिव इन के निकले हैं

महिला आयोग की चेयरपर्सन रेनू भाटिया ने कहा कि शारीरिक शोषण के जितने भी मामले आते हैं, उनमें ज्यादातर लिवइन के निकलते हैं। ये हरियाणा ही नहीं, बल्कि सभी जगह हैं। इन मामलों में दखल देना बहुत मुश्किल हो जाता है। कानून के चलते हमारे हाथ बंधे रहते हैं। उन्हें सुलझाने की कोशिश की जाती है। इसके अलावा इन मामलों में शामिल परिवार की भी इमेज खराब होती है। जिसके चलते अपराध कम नहीं, बल्कि बढ़ रहे हैं और परिवार टूटते जा रहे हैं। उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि लिव-इन रिलेशनशिप कानून की वजह से अपराधों की संख्या भी बढ़ रही।

OYO पर कही ये बात

वहीं महिलाओं के खिलाफ बढ़ते शारीरिक शोषण के मामले के लिए भाटिया ने लड़कियों को ही जिम्मेदार ठहराया। उन्होंने कहा कि ये OYO रूम में क्यों जाती हैं? लड़कियां हनुमान जी की आरती करने नहीं जाती हैं, ऐसी जगहों पर जाने से पहले इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि वहां आपके साथ कुछ गलत हो सकता है।

उन्होंने कहा कि शोषण के केस में लड़कियां अक्सर ये बयान देती हैं कि किसी लड़के ने उनसे दोस्ती की और उनकी कोल्ड ड्रिंक में कुछ मिला दिया। फिर उनके साथ गलत हरकत की और वीडियो बना लिया। ये अब नॉर्मल बात हो गई है।

लिव इन रिलेशनशिप को लेकर क्या कहता है देश का कानून

प्रेमी जोड़े का शादी किए बिना लंबे समय तक एक घर में साथ रहना लिव-इन रिलेशनशिप कहलाता है। लिव-इन रिलेशनशिप की कोई कानूनी परिभाषा अलग से कहीं नहीं लिखी गई है। आसान भाषा में इसे दो व्यस्कों  का अपनी मर्जी से बिना शादी किए एक छत के नीचे साथ रहना कह सकते हैं।

लाइव लॉ की एक रिपोर्ट के मुताबिक, चार दशक पहले 1978 में बद्री प्रसाद बनाम डायरेक्टर ऑफ कंसोलिडेशन (Badri Prasad vs Director Of Consolidation) के केस में सुप्रीम कोर्ट ने पहली बार लिव-इन रिलेशनशिप को मान्यता दी थी। यह माना गया था कि शादी करने की उम्र वाले लोगों के बीच लिव-इन रिलेशनशिप किसी भारतीय कानून का उल्लंघन नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर कोई कपल लंबे समय से साथ रह रहा है, तो उस रिश्ते को शादी ही माना जाएगा। इस तरह कोर्ट ने 50 साल के लिव-इन रिलेशनशिप को वैध ठहराया था।

न्यायपालिका से संबंधित खबरों को आसान भाषा में बताने वाले मीडिया संस्थान लाइव लॉ की मानें, तो लिव-इन रिलेशनशिप की जड़ कानूनी तौर पर संविधान के अनुच्छेद 21 में मौजूद है। अपनी मर्जी से शादी करने या किसी के साथ लिव-इन रिलेशनशिप में रहने की आजादी और अधिकार को अनुच्छेद 21 से अलग नहीं माना जा सकता।

 

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