धर्म/आस्था

श्रावण मास सोमवार का महत्व – सनातनी एवं वैदिक पद्धति के अनुसार जीवन के अंधकार को हरने वाला

श्री महंत रामरतन गिरी जी
सचिव, पंचायती अखाड़ा श्री निरंजनी ,हरिद्वार

श्रावण सोमवार – आध्यात्मिक जागरण का संवेदनशील पर्व

सनातन परंपरा में श्रावण मास को ईश्वर भक्ति, साधना, तप और आत्मशुद्धि का मास माना गया है। विशेष रूप से सोमवार का दिन, जब यह श्रावण मास में आता है, तो उसका महत्व सहस्त्रगुणित हो जाता है। यह समय केवल व्रत या रीति-रिवाज का नहीं, बल्कि जीवन के तम (अंधकार) को नष्ट कर सत्व (प्रकाश) की ओर यात्रा का है। वैदिक परंपरा में श्रावण सोमवार एक ‘जीव-चेतना जागरण उत्सव’ की भांति है, जो शिव तत्व से जुड़कर जीवन के समस्त भय, पीड़ा, असमंजस और कर्मबंधन को काटने की शक्ति देता है।

श्रावण मास का वैदिक आधार : ऋतु, ऋषि और रस का संगम

ऋतु संबंध : वर्षा और चित्त की धुलाई
श्रावण मास वर्षा ऋतु में आता है। जब वायुमंडल में नमी, शीतलता और विद्युत् प्रवाह बढ़ते हैं, तब वातावरण तपस्या के लिए उपयुक्त बनता है। जल तत्त्व में चंद्रमा का प्रभाव और सोमरस की धारणा भी इस मास को विशेष बनाती है।

ऋषियों का समय : उपवासन, वनवासी साधना

वेदकालीन समय में यह ऋषियों की साधना का चरम काल होता था। महाभारत में पांडवों ने भी अपने वनवास के कठिन भाग श्रावण में तप करके बिताए।

सोमवार : मन, चंद्र और शिव के संयोग का दिवस

सोमवार का संबंध चंद्रमा (सोम) से है, जो मन का अधिपति है। चंद्रमा की चंचलता को साधने के लिए भगवान शिव को आराध्य बनाया गया। शिव को ‘चंद्रशेखर’ कहा जाता है – जो चंद्र को नियंत्रित करने वाले हैं।

शिव और चंद्र : मन पर नियंत्रण का प्रतीक

जब चंद्रमा को दक्ष के शाप से क्षय हुआ, तब शिव ने उन्हें अपने मस्तक पर स्थान दिया।
यह प्रसंग बताता है कि जब मन दुर्बल हो, भ्रमित हो, तब शिव से जुड़कर वह पुनः पूर्णता की ओर लौटता है।

श्रावण सोमवार व्रत : आध्यात्मिक और वैज्ञानिक आधार

श्रावण के प्रत्येक सोमवार को व्रत करने की परंपरा है। यह व्रत केवल सामाजिक या स्त्रियों का सौभाग्यवर्धक व्रत नहीं है, बल्कि व्यक्ति के भीतर की अधर्मात्मक ऊर्जा, चंचलता और दोषों को समाप्त करने का साधन है।
व्रत के चरण:
1. प्रातः ब्रह्ममुहूर्त में जागरण
2. स्नान और स्वच्छ वस्त्र धारण
3. शिवलिंग का अभिषेक – जल, दूध, बेलपत्र, भस्म, चंदन से
4. “ॐ नमः शिवाय” मंत्र का 108 बार जप
5. दिनभर उपवास या फलाहार
6. संध्या में दीपदान, शिव चालीसा, रुद्राष्टक का पाठ
वैज्ञानिक दृष्टि:
  • व्रत से शरीर डिटॉक्स होता है
  • मानसिक रूप से मन शांत होता है
  • शिवध्यान से चंद्रमा संतुलित होता है
  • शिवलिंग पर जलाभिषेक से जल-ऊर्जा का स्पंदन सक्रिय होता है

अंधकार से प्रकाश की ओर – प्रतीकात्मक व्याख्या

आत्मिक अंधकार का प्रतीक श्रावण
श्रावण मास उस कालखंड का प्रतीक है जब मनुष्य जीवन में निराशा, भ्रम, कष्ट, मोह और मोहभंग से जूझता है – जैसे वर्षा में आकाश में अंधकार छा जाता है।
सोमवार – समाधान का स्वर श्रावण सोमवार शिव के शरणागत होकर उस तमस को समाप्त करने का समय है। शिव केवल त्रिनेत्रधारी नहीं, बल्कि तम-हर, मुक्तिदाता, मौन साधना के आराध्य हैं।
पौराणिक घटनाएँ और श्रावण सोमवार
समुद्र मंथन: इसी काल में देव-दानवों द्वारा समुद्र मंथन हुआ। उसमें सबसे पहले निकला था कालकूट विष, जिसे पीने का साहस केवल शिव ने किया। अतः शिव को ‘नीलकंठ’ कहा गया।
श्रावण सोमवार हमें विषपान (दुःख सहन) की शक्ति और समत्व भाव की शिक्षा देता है।
पार्वती की कठोर तपस्या: पार्वती ने शिव को पति रूप में प्राप्त करने हेतु श्रावण मास में व्रत किया।यह संकल्प और साधना का प्रतीक है – जो साधक को लक्षित फल की प्राप्ति तक ले जाता है।

आधुनिक जीवन में श्रावण सोमवार की प्रासंगिकता

  • तनावपूर्ण जीवन में मानसिक शांति का माध्यम
  • कुटुंब और स्त्री-पुरुष संबंधों में सामंजस्य का माध्यम
  • संतान, स्वास्थ्य, व्यवसाय आदि में शुभता की आकांक्षा
  • नैतिक पतन और आत्मविस्मृति से बचने का उपाय

शिव की शरण में अंधकार की समाप्ति

श्रावण सोमवार सनातन संस्कृति का वह पर्व है जो अशांत मन को स्थिरता, विकारों को विमुक्ति, और जीवन को पुनः प्रकाशमय बनाने का अवसर देता है। यह केवल कर्मकांड नहीं, बल्कि आत्मिक परिष्कार का मार्ग है। जो व्यक्ति श्रद्धा, निष्ठा और संयम से श्रावण सोमवारों का पालन करता है, उसका जीवन शिवमय हो जाता है – जिसमें भय, भ्रम और दुर्बलता का स्थान नहीं होता।

शिववाक्य:

“शिवो भूत्वा शिवं यजेत्।”
अर्थात – शिव को पाने के लिए स्वयं शिवतुल्य बनना आवश्यक है – यही श्रावण सोमवार का मर्म है।

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