जोशीमठ 6107 फीट की ऊंचाई पर स्थित लगभग 23,000 की आबादी वाला उत्तराखंड के चमोली जिले का एक पहाड़ी शहर है। यह हिंदुओं द्वारा पूजनीय बद्रीनाथ मंदिर, हेमकुंड साहिब का सिख तीर्थ स्थल, फूलों की घाटी जो यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल है जोशीमठ में अंतरराष्ट्रीय स्कीइंग गंतव्य भी है और विभिन्न ट्रेकिंग स्थान हैं। इसके कारण होटल और बाज़ार का निर्माण हुआ है जो शहर में टूरिस्ट को आकर्षित करता है।
इंडिया टुडे की रिपोर्ट के मुताबिक अक्टूबर 2021 में शहर के गांधीनगर और सुनील वार्ड के निवासियों ने अपने घरों में दरारें देखीं। 2022 के मध्य तक रविग्राम वार्ड में भी दरारें आ गईं। सितंबर 2022 में उत्तराखंड राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (USDMA) ने एक रिपोर्ट प्रकाशित की जिसमें मुख्य रूप से शहर में खराब नियोजित निर्माण को भूमि धंसने के पीछे एक महत्वपूर्ण कारण बताया गया। रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि अपर्याप्त जल निकासी और अपशिष्ट जल निपटान प्रणाली ने समस्या को बढ़ा दिया है।
श्रीनगर गढ़वाल स्थित हेमवती नंदन बहुगुणा (HNB) गढ़वाल विश्वविद्यालय के भूविज्ञानी यशपाल सुंद्रियाल ने कहा, “चूंकि जोशीमठ में वेस्ट वाटर के प्रबंधन के लिए कोई व्यवस्था नहीं है, इसलिए अधिकांश इमारतों में गड्ढ़े होते हैं, जिसके माध्यम से वेस्ट वाटर जमीन में प्रवेश करता है। यह वेस्ट वाटर फिर सामग्री को जमीन में धकेल देता है, जिसके परिणामस्वरूप भूमि डूब जाती है।
राज्य भर में कई जगहों पर इसी तरह की स्थिति का सामना करना पड़ रहा है। चमोली जिले में ही 2013 की बाढ़ के बाद जोशीमठ के पास खिरोन-लामबागर ग्राम सभा के अंतर्गत आने वाले गांव डूबने लगे थे। हालांकि उत्तराखंड डिजास्टर मिटिगेशन एंड मैनेजमेंट सेंटर (DMMC) के कार्यकारी निदेशक पीयूष रौतेला (Piyoosh Rautela) ने कहा कि जोशीमठ की स्थिति अलग थी। उन्होंने कहा, “पूरे उत्तराखंड के गांवों में डूबने की घटनाएं देखी गई हैं, लेकिन यह पहली बार है कि किसी शहरी क्षेत्र में भूमि डूबने का मामला सामने आया है।”
न्यूज18 ने 31 दिसंबर को राज्य सरकार द्वारा मंगाई गई 113 पन्नों की बोली दस्तावेज को हासिल किया है, जिसमें जोशीमठ शहर की ‘स्थायी सुरक्षा’ के लिए एक व्यापक भूवैज्ञानिक और भू-तकनीकी जांच के साथ ही एक जल निकासी योजना तैयार करने के लिए कहा गया था. इस टेंडर को 20 जनवरी को खोला जाना था, लेकिन यह देखते हुए कि मामला प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) के स्तर तक पहुंच गया है, अब इसकी तारीख 13 जनवरी कर दी गई है. न्यूज18 एक दिन पहले ही 9 जनवरी को अपनी रिपोर्ट में बता चुका है कि कैसे जोशीमठ में जल निकासी व्यवस्था की कमी इस भू-धंसान संकट का एक प्रमुख कारण है.दस्तावेज़ में कहा गया है, ‘जोशीमठ के स्थानीय निवासियों ने शिकायत की है कि शहर का बड़ा हिस्सा धीरे-धीरे डूब रहा है और घरों व सड़कों में दरारें आ रही हैं और समस्या अक्टूबर 2021 में भारी बारिश के बाद बढ़ गई है.’ इसमें कहा गया है कि उत्तराखंड राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण, सेंट्रल बिल्डिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट (रुड़की), आईआईटी-रुड़की, भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण और वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के विशेषज्ञों की एक टीम ने अगस्त 2022 में जोशीमठ के आसपास फील्ड वर्क किया था।
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