भगवान शिव की उपासना के लिए सप्ताह के सभी दिन अच्छे माने जाते हैं लेकिन सोमवार को शिव की आराधना का एक विशेष महत्व होता है। शिवरात्रि तो हर महीने में आती है लेकिन महाशिवरात्रि सालभर में एक बार आती है। फाल्गुन मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को महाशिवरात्रि का त्योहार मनाया जाता है। इस दिन भगवान शिव की आराधना की जाती है और देश भर में अनेक जागरण होते हैं।
महाशिवरात्रि क्यों मनाया जाता है
अलग-अलग ग्रंथों में महाशिवरात्रि की अलग-अलग मान्यता मानी गई है। कहा जाता है कि शुरुआत में भगवान शिव का केवल निराकार रूप था। भारतीय ग्रंथों के अनुसार फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी पर आधी रात को भगवान शिव निराकार से साकार रूप में आए थे।
शिव पुराण की कथाओं के अनुसार, महाशिवरात्रि के दिन शिवजी पहली बार सृष्टि में प्रकट हुए थे। शिव का प्राकट्य ज्योतिर्लिंग यानी अग्नि के शिवलिंग के रूप में था। ऐसा शिवलिंग जिसका ना तो आदि था और न अंत। बताया जाता है कि शिवलिंग का पता लगाने के लिए ब्रह्माजी हंस के रूप में शिवलिंग के सबसे ऊपरी भाग को देखने की कोशिश कर रहे थे लेकिन वह सफल नहीं हो पाए। वह शिवलिंग के सबसे ऊपरी भाग तक पहुंच ही नहीं पाए। दूसरी ओर भगवान विष्णु भी वराह का रूप लेकर शिवलिंग के आधार ढूंढ रहे थे लेकिन उन्हें भी आधार नहीं मिला। कुछ हिन्दू मान्यताओं के अनुसार इसी दिन से ही सृष्टि का निर्माण हुआ था। ऐसी मान्यता हैं की इसी दिन भगवान शिव करोड़ो सूर्यो के समान तेजस्व वाले लिंगरूप में प्रकट हुए थे।
64 जगहों पर प्रकट हुए थे शिवलिंग
एक और कथा यह भी है कि महाशिवरात्रि के दिन ही शिवलिंग विभिन्न 64 जगहों पर प्रकट हुए थे। उनमें से हमें केवल 12 जगह का नाम पता है। इन्हें हम 12 ज्योतिर्लिंग के नाम से जानते हैं।
भारतीय मान्यता के अनुसार फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को सूर्य और चंद्र अधिक नजदीक रहते हैं। इस दिन को शीतल चन्द्रमा और रौद्र शिवरूपी सूर्य का मिलन माना जाता हैं। इसलिए इस चतुर्दशी को महाशिवरात्रि के रूप में मनाया जाता हैं।
शिवरात्रि का आध्यात्मिक महत्व
शिवरात्रि के दिन शिव भक्त सवेरे से लेकर शाम तक भगवान शिव का ध्यान करते हैं। जिससे आध्यात्मिक शक्ति उजागर होती है और प्रकाश पुंज का अवलोकन होता है। जब व्यक्ति अपने स्वभाव को भूलकर भगवान शिव में ध्यान लगाते हैं। तो उन्हें एक पूजा का एहसास होता है। जिससे उन्हें आध्यात्मिक शक्ति प्राप्त होती है। धीरे-धीरे अध्यात्म में रुचि बढ़ना शुरू हो जाती है। अध्यात्म को जानना अध्यात्म को पढ़ना तथा आध्यात्मिक के बारे में चर्चा करना व्यक्ति का अध्यात्म दिमाग भी विकसित होता है। जिससे उस अलौकिक शक्ति का एहसास किया जा सकता है। जो प्रत्येक व्यक्ति के लिए आवश्यक है। ऐसी शक्ति से व्यक्ति को सर्वांगीण विकास करने हेतु बहुत अत्यधिक महत्व रखती है।
महाशिवरात्रि का व्रत क्यों रखा जाता है ?
महाशिवरात्रि का व्रत भगवान शिव के भक्तों के लिए सबसे महत्वपूर्ण व्रत माना जाता है। शिव पुराण में कहा गया है कि यदि कोई भक्त शिवरात्रि व्रत को ईमानदारी, शुद्ध भक्ति और प्रेम के साथ करता है तो उसे भगवान शिव की दिव्य कृपा प्राप्त होती है। हर साल भक्त भक्ति और ईमानदारी के साथ महा शिवरात्रि का व्रत रखते हैं। हालांकि कई लोग फल और दूध का आहार लेते हैं, कुछ शिवरात्रि महोत्सव के दिन और रात भर पानी की एक बूंद भी नहीं पीते हैं।शिवरात्रि के दिन सूर्यास्त के बाद भोजन नहीं किया जाता है। पूजा करने के बाद अगला भोजन अमावस्या (अगले दिन सुबह) की सुबह लिया जाता है।
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