भोपाल

रबीन्द्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय में शिल्प से अक्षर आदिवासी कला पर डिज़ाइन और प्रौद्योगिकी का प्रभाव विषय पर अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन हुआ

आजादी के अमृत महोत्सव के अंतर्गत भारतीय ज्ञान परम्परा के संदर्भ में ” शिल्प से अक्षर आदिवासी कला पर डिज़ाइन और प्रौद्योगिकी का प्रभाव” विषय पर एक दिवसीय अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। संगोष्ठी के मुख्य वक्ता के रूप में यू.पी. ई.एस. देहरादून के सह-आचार्य ईशान खोसला उपस्थित रहे।  कार्यक्रम में आधार वक्तव्य युवा कवि एवं विचारक पाँखुरी वक़्त जोशी द्वारा दिया गया। कार्यक्रम के मुख्य वक्ता के रूप में टाइपफेस डिज़ाइनर एवं शोधकर्ता ईना यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ़ डिज़ाइन इन आर्ट ,स्पेन के डॉ. आंद्रेउ बालियस उपस्थित रहे। कार्यक्रम की अध्यक्षता सीवी रामन विश्वविद्यालय, खंडवा के चांसलर प्रो. अमिताभ सक्सेना द्वारा किया गया।

इस एक दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन संस्कृत, प्राच्य भाषा शिक्षण एवं भारतीय ज्ञान परंपरा केंद्र की समन्वयक और मानविकी एवं उदार कला संकाय के इतिहास विभाग की सह-आचार्य डॉ. सावित्री सिंह परिहार द्वारा किया गया । यह अन्तराष्ट्रीय संगोष्ठी, रबीन्द्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय , भोपाल एवं धरोहर पुरास्थल, पुरावस्तु एवं सामजिक संरक्षण संस्थान ,भोपाल के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित की गयी.कार्यक्रम के मुख्य अतिथि आंद्रेउ बालियस ने टाइपोग्राफी पर बात करते हुये कहा कि टाइपोग्राफी द्वारा किसी सन्देश को विज़िबल बनाया जाता है। उन्होंने लेटर और टाइप में अंतर स्पष्ट करते हुए कहा कि लेटर किसी लिखित भाषा का आधार होता है तो टाइपोग्राफी द्वारा उस लिखित भाषा को दृश्यात्मक बना सकते हैं।

ग्राफ़िक डिज़ाइन में हमारी सांस्कृतिक विरासत अछूता है- ईशान खोसला

मुख्य वक्ता के रूप में ईशान खोसला ने कहा कि हम अपनी सांस्कृतिक विरासत को ग्राफ़िक डिजाइनिंग में पूरी तरह से नहीं ला पा रहे हैं जैसे टेक्स्टटाइल डिजाइनिंग में दिखता है। अपने उद्धबोधन में उन्होंने कहा कि सांस्कृतिक सौंदर्य वैविध्यता से आती है। आगे उन्होंने जनजाति समाज में गोदना में भाषा के महत्व को रेखांकित अपने सांस्कृतिक विरासत को डिज़ाइन एवं प्रौद्योगिकी में आने की बात कही।

जनजाति समुदाय को समग्रता से देखे जाने की है जरुरत- अमिताभ सक्सेना

कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे सीवी रामन विश्विद्यालय,खंडवा के कुलाधिपति प्रो.अमिताभ सक्सेना ने कहा कि जनजाति समुदाय को समग्रता से देखे जाने की जरुरत है। उन्होंने जनजाति को वनवासी कहते हुए कहा कि वनवासी प्रकृति के साथ मिलकर काम करते हैं।
वहीं युवा कवि और विचारक पाँखुरी वक़्त जोशी ने उद्द्गार व्यक्त करते हुए कहा कि आदिवासी समाज प्रकृति को लेकर संवेदनशील हैं।  वहीं युवा कवि और विचारक पाँखुरी वक़्त जोशी ने उद्द्गार व्यक्त करते हुए कहा कि आदिवासी समाज प्रकृति को लेकर संवेदनशील हैं।
कार्यकम की संयोजक एवं धरोहर पुरास्थल ,पुरावस्तु एवं सामजिक संरक्षण संस्था की पूजा सक्सेना ने सभी अतिथियों का आभार व्यक्त करते हुए कहा कि कला या सांस्कृतिक धरोहर को आर्थिक संबल प्रदान करना जरुरी है।

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